Skip to content

My Daughter My Pride : Dua Choudhary

 मेरी बेटी, मेरा अभिमान – My Daughter My Pride

My Daughter My Pride

My Daughter My Pride Dua Choudhary
My Daughter My Pride Dua Choudhary

My Daughter My Pride

नमस्कार… मैं बिदु चौधरी वर्तमान में बीकानेर राजस्थान में रहती हूं और मैं सीनियर टीचर के रूप में यहां पर पदस्थापित हूं । आज मैं जिस की बात कर रही हूं वह कोई और नहीं मेरी स्वयं की बेटी दुआ चौधरी है जिसके ऊपर मुझे पहले भी बहुत अभिमान था अभिमान है और मैं यही कहना चाहूंगी कि एक मां के रूप में हमेशा मुझे भविष्य में भी यह मौका देती रहेंगी कि मैं उनके ऊपर अभिमान करती रहूं।

नंजरें तो सभी की एक सी होती हैं , लेकिन नजरिया एक जैसा नहीं होता ।

हवाएं तो बहुत चलती हैं , लेकिन बरखा लाये ऐसा नहीं होता ।

ज़ी हाँ, मेरी बेटी दुआ चौधरी के जन्म पर भी ऐसा ही हुआ, जब अहसास हुआ कि परिवार में एक नई उम्मीद की किरण प्रकाशित होने वाली है तो इस पुरुष प्रधान समाज में जो परिपाटी चली आ रही है वही कुछ हमारे परिवार में भी हो रहा था पतिदेव मेरे साथ थे, परन्तु परिवार कि खुस-फूस  छुपी नहीं कि परिवार में पहला सदस्य परिवार का नाम रोशन करने वाला ही होना चाहिए|

परन्तु में और दुआ के पापा तो भगवान् से बस यही प्रार्थना कर रहे थे कि जो भी सदस्य आये वह स्वस्थ होना चाहिए और फिर छबीस जनवरी दो हज़ार चार बसंत पंचमी, गुप्त नवरात्र और भारत देश का पर्व गणतंत्र दिवस था उसी दिन सुबह दस बजकर सत्रह मिनट पर ऑपरेशन थिएटर में नई किलकारी गूंज उठी, जी हाँ दुआ का जन्म इसी दिन हुआ था|

नई किलकारी ने आते ही अपनी सार्थकता सिद्ध कर दी जब नर्स बच्ची को ऑपरेशन थिएटर से बाहर लेकर आई तो दुआ की बड़ी मौसी चहकते हुए बोली अरे! लाडो रानी जन्म लेते ही पूरी दुनिया को देखने कि चाहत है क्या, क्यूंकि दुआ आंखे खोले इस नये संसार को टुकुर-टुकुर निहार रही थी |

  पिता और नानी ने पंडित के द्वारा बताये गए अनुसार दुआ नाम रखा और आज में गर्व से कह सकती हूँ कि ‘दुआ मेरी बेटी मेरा अभिमान है‘ और कहूँ भी क्यों नहीं जब छोटी थी तभी से अनोखी थी | दस महीने की हुई नहीं की चलना सीख लिया और मेरे साथ मेरी कर्मस्थली जाने लगी| अपने पहले जन्म दिन पर तो दुआ ने गणतंत्र दिवस पर नाच कर समां ही बांध दिया और जैसे जैसे बड़ी हुई अपनी स्वयं कि स्कूल जाने लगी और वहां से शुरू हुआ दुआ कि कामयाबी और माँ की बड़ी बड़ी खुशियों का सफ़र|

पढाई-लिखाई हो या खेलकूद ,वाद विवाद प्रतियोगिता हो या सांस्कृतिक  कार्यक्रम सभी में भाग लेती और अपना स्थान बनाती| बाद में दुआ को अपनी स्कूल छोड़कर माँ की स्कूल में दाखिला लेना पड़ा , हमारी हेड मिस्ट्रेस सुन्दर पंवार मैम हमेशा कहती थी कि बिंदु, दुआ को हमेशा दिमाग से व्यस्त रखना| हमने भी उनकी बात का अनुसरण किया और पढाई के साथ-साथ अपने पिता और भाई चक्रधर के साथ शाम को क्लब जाकर खेलकूद में लगे रहना ही दुआ कि दिनचर्या बन गयी| मुझे अभी भी याद है जब मै घर पर ट्यूशन पढ़ाती थी तब दसवी-बारहवी और कॉलेज वाले बच्चे अंग्रेजी व्याकरण के प्रश्नों के उत्तर नहीं दे पाते थे और दुआ फटाफट उनके उत्तर दे देती थी|

 मुझे एक दिन हमारी हैड मैडम सुन्दर पंवार की याद आ गयी कि दुआ को हमेशा दिमाग से व्यस्त रखना,बस फिर क्या था मैंने मन ही मन जैसे कुछ ढान लिया था और दुआ को दसवीं कि तैयारी करवाने लगी और उम्र में छोटी दुआ ने भी जैसे साथ देने कि सोच कमर कस ली थी कि मुझे भी अपना दमखम दिखाना है और बिना किसी ट्यूशन के माँ-पिता के साथ पढाई में जुट गयी|

वार्षिक परीक्षा से एक दिन पहले दुआ कि बड़ी मौसी का फ़ोन आया कि दुआ आप उम्र में भले ही छोटे हो, परन्तु दिमाग से नहीं  और परीक्षा के लिए टिप्स देने लगी तब दुआ ने जो कहा मैंने वह सुना कि मौसी आप चिंता न करें मुझे सेक्शन वाइज सवाल हल करने है और शब्द सीमा का भी ध्यान रखना है और दुआ ने बड़े ही शांत मन से अपनी परीक्षा दी|

 परन्तु सबसे बड़ी परीक्षा तो हमारी शुरू होने वाली थी, कि परीक्षा फल क्या होगा, दुआ ने वही अपना खेल अभ्यास व् म्यूजिक क्लास लेना शुरू कर दिया था, और वह दिन भी आ गया जिसका हम सबको इंतज़ार था, जी हाँ दुआ का रिजल्ट; सुबह से ही लग रहा था कि अब रिजल्ट आ जाये बस जो भी मुझे उसकी चिंता नहीं| पर जब रिजल्ट आया तो में तो जैसे ख़ुशी से उछल ही पड़ी क्यूंकि दुआ के चार विषयों में डिस्टिंक्शन मार्क्स आये थे और बेस्ट फर्स्ट डिवीज़न से दुआ ने दसवीं उतीर्ण की थी, पुरे मोहल्ले में सबसे ज्यादा नंबर लायी थी दुआ|

मुझे वाकई अपने बेटी पर गर्व महसूस होने लगा पर यह तो शुरुआत थी इसके बाद तो दुआ ने जैसे सफलता का दामन थाम लिया| स्कूल में पढाई के अलावा सांस्कृतिक कार्यक्रम, खेलकूद कार्यक्रमों की एंकर के रूप में तो पुरे स्कूल में अपने नाम से दुआ को सब जानने लगे|

मुझे याद है कि में आकाशवाणी में पार्ट टाइम एनाउंसर के रूप में एक दिन अपनी ड्यूटी पर जा रही थी, दुआ के पापा जयपुर गए हुए थे तब दुआ ने कहा मम्मी मै भी आपके साथ आकाशवाणी केंद्र चलूंगी और वहां पर कार्यक्रम अधिकारी से बात करते हुए कब उन्होंने दुआ को वार्ता के लिए कह दिया मुझे तो अपने प्रोग्राम के बाद पता चला और दुआ आकाशवाणी में कार्यक्रम देने लगी| इसी प्रकार बारहवीं भी दुआ ने गणित-विज्ञानं के साथ अच्छे नम्बरों से उत्तीर्ण की|

 दुआ के पिता जो कि कॉलेज शिक्षा में व्याख्याता के रूप में पदस्थापित हैं उनका तबादला जयपुर हो जाने के कारण वे दुआ और उसके छोटे भाई चक्रधर को भी अपने साथ जयपुर ले आये|

जिस दुआ ने बारहवीं विज्ञानं-गणित के साथ उत्तीर्ण की उसने अपने पिता की सहमति से कॉलेज में कला विषय का चयन किया और कॉलेज जाने लगी परन्तु अब छोटी सी दुआ पर दो-दो जिम्मेदारियां आ गयी ,क्यूंकि मेरी कर्मस्थली बाहर है तो घर के छोटे-मोटे कार्यों के साथ ही भाई की पढाई का जिम्मा भी दुआ पर आ पड़ा, चूँकि दोनों ही बच्चों को ट्यूशन की आदत नहीं है पर दुआ ने हार नहीं मानी|

घर के कार्यो में सहायता करके, भाई को पढ़ाकर कॉलेज जाना और अपनी पढ़ाई करना ही दुआ ने अपना उदेश्य बना लिया था| नए विषयों में अपने सभी लेक्चरर के साथ हमेशा पढाई में लगी रहती साथ ही सुबह नियमित रूप से राजस्थान विश्वविद्यालय में सैर को जाना , फिर तैराकी सीखना और शाम को पियानो और गिटार का रियाज़ करना और अपने और अपने भाई की पढाई पर ध्यान देना|

 कॉलेज में NCC ज्वाइन करके न सिर्फ अपने पिता-माता के नक़्शे कदम पर चली बल्कि उनसे भी एक कदम आगे निकल कर न सिर्फ कॉलेज के विद्यार्थियौं के बीच अपितु पूरी बटालियन में लिखित परीक्षा में सर्वाधिक ग्रेड A+ प्राप्त कर सबको गौरवान्वित किया | इसी प्रकार दुआ और उसके भाई ने RKCL का कोर्स किया और उसमे भी अपने अपने बैच में सर्वाधिक प्रतिशत ग्रहण किये |

  जब दुआ के कॉलेज के प्रथम वर्ष का रिजल्ट घोषित हुआ तो दुआ ने अपने सभी पिछले रिकार्ड्स को तोड़ने  का मानस बना लिया था और साइंस-गणित की छात्रा कला वर्ग में अपने विषय में उच्च अंक लाने वाली दुआ बन गयी | दुआ के मामाजी जो उस वक़्त अपनी विजय ट्रेवल एजेंसी के कार्य से बाहर गए हुए थे उन्होंने एक ही वाक्य कहा कि “ दुआ ने हम सुब कि दुआएं ले ली“ और इस प्रकार मेरी बेटी ने फिर एक बार मेरा सर समाज में सबके सामने गर्व से उठाने का मौका दिया |

स्वच्छ भारत अभियान में स्कूल समय में अपने प्रिसिपल से पुरस्कृत दुआ अब भी कभी रक्त दान का कार्य हो या रन फॉर ग्रीन जयपुर में हिस्सा लेना हो, अन्तर कॉलेज नृत्य प्रतियोगिता में स्थान ग्रहण करना हो या कोई सामाजिक सरोकार से जुड़े कार्य सबकी चहेती दुआ सबमे आगे रहती है |

  कोरोना काल में भी वर्तमान में अपनी ऑनलाइन कक्षा लेने के साथ ही पाक कला पर भी हाथ आजमाती रहती है , ऑनलाइन  NCC ट्रेनिंग में अपनी बटालियन के पांच दिवसीय शिविर में वाद-विवाद प्रतियोगिता और पोस्टर प्रतियोगिता में प्रथम स्थान हासिल किया |

My Daughter My Pride

आज यह सब लिखते हुए ख़ुशी होती है कि दुआ ने एक बेटी के रूप में मेरा मान बढाया और मै गर्व से कह सकती हूँ कि

 ”मेरी बेटी मेरा अभिमान है |” My Daughter My Pride

My Daughter My Pride

WhatsApp Image 2020 11 12 at 6.06.27 PM 1

My Daughter My Pride

Bindu Chaudhary

वरिष्ठ अध्यापिका

बीकानेर

राजस्थान


Meet The Teachers

If you also know any such teacher who has benefited the world of education through their work. To get his story published in Meet the Teachers, email us at fourthscreeneducation@gmail.com

The “Meet the Teachers” section on Fourth Screen Education’s website showcases the inspiring stories of educators across India who are making a significant impact in the field of education. This initiative highlights their dedication, innovative teaching methods, and contributions to student development.