Geeta: National Teachers’ Awards 2020 – A teacher, an example

Geeta: National Teachers’ Awards 2020 – A teacher, an example
एक टीवी धारावाहिक में एक राजा शिक्षक से कहता है—
“एक साधारण शिक्षक और इतना अहंकार!”
तो प्रत्युत्तर में शिक्षक कहते हैं—
“शिक्षक कभी साधारण नहीं होता। निर्माण और प्रलय दोनों उसकी गोद में पलते हैं।”
इस बात को बाड़मेर जिले के रा.क.प्रा. विद्यालय सरूपोणी मालियों का वास की शिक्षिका गीता (Geeta) से बेहतर और कौन जान सकता है?
बाड़मेर के कवास क्षेत्र में आई भयंकर बाढ़ में उनका विद्यालय और 15 बच्चे बह गए। इस हादसे ने गीता (Geeta) को अंदर तक झकझोर दिया। फिर भी अपने दर्द को सीने में दबाए, वह कर्मपथ पर अग्रसर रहीं। समय के साथ लोग उस घटना को भुला बैठे, परंतु गीता (Geeta) के मन पर पड़ा घाव हर बार हरा होकर उसे चुभता रहा। इस हादसे के बाद धन, पद और ऐश्वर्य उन्हें मोह-माया और व्यर्थ प्रतीत होने लगे।
आज हम सभी भौतिकवाद और भोगवाद के रणक्षेत्र में अपने-अपने हथियार लेकर खड़े हैं। जैसा कि “गीता” में कुरुक्षेत्र में अर्जुन कहते हैं—
“यह बड़े शोक की बात है कि हम लोग बड़े भारी पाप करने का निश्चय कर बैठे हैं और राज्य तथा सुख के लोभ में अपने स्वजनों का नाश करने को तैयार हैं।”
जहाँ एक ओर लोग धन, जमीन और पद के लिए अपनों का खून बहाने में भी संकोच नहीं करते, वहीं गीता (Geeta) ने अपने हिस्से की पुश्तैनी जमीन विद्यालय के नाम कर दी। इससे लाखों लोगों की दुआओं और बच्चों के प्रति माँ के ममत्व के गुलदस्ते उनके आँचल में खिल उठे।
गीता (Geeta) ने विद्यालय में छात्रों की संख्या बढ़ाई और नई शिक्षण पद्धतियों को अपनाते हुए शिक्षा जगत को एक नया आयाम दिया।
वर्षों से पवित्र ग्रंथ “गीता” में कहा गया है—
“कर्म करो, फल की चिंता मत करो।”
इस कर्मयोग की शिक्षा को बाड़मेर की गीता से बेहतर और कौन अपने हृदय में उतार सकता है? शिक्षक पर समाज और राष्ट्र के निर्माण की जिम्मेदारी है। समय-समय पर इस भारतवर्ष ने ऐसे महान शिक्षक दिए हैं, जिनके प्रकाश में अनगिनत लोग उन्नति, विकास और जीवन निर्माण के पथ पर चले हैं और अपनी मंजिल तक पहुँचे हैं।
जब पहली बार कोई बच्चा अपनी माँ की गोद से बिछुड़कर शिक्षक की तर्जनी थामता है, तो उसके मन में क्या बीतती होगी! अब तक उसकी पूरी दुनिया उसकी माँ के इर्द-गिर्द थी, और अब एक अजनबी के पास — जो उसकी आदतों और जरूरतों से अनभिज्ञ होता है। माँ के स्नेहिल आँचल के स्थान पर अनुशासन, नए सहपाठी, डराने वाला ब्लैकबोर्ड, और कहीं-कहीं डाँट और गुस्से से भरे शिक्षक— यह बदलाव बच्चे के लिए कितना बड़ा झटका होता है।
यह भी सत्य है कि आज शिक्षक, शिक्षार्थी, शिक्षण और समाज के बीच दूरियाँ बढ़ गई हैं। यह सिर्फ शिक्षकों के सम्मान में कमी तक सीमित नहीं है; हर सामाजिक रिश्ते में यह खाई गहराती जा रही है। फिर भी, आज परिस्थितियाँ बदली हैं और शिक्षकों का व्यवहार भी बदला है।
अब विद्यालयों में शिक्षक और शिष्य के बीच गुरु-मित्र का नवीन रिश्ता बना है। बाड़मेर की गीता (Geeta) तो एक उदाहरण मात्र हैं, समाज में ऐसे अनेकों शिक्षक हैं जिनसे ज्ञान और प्रेरणा ली जा सकती है। कोरोना काल में शिक्षकों ने क्वारंटाइन सेंटर, खाद्य वितरण, चेक पोस्ट ड्यूटी, प्रवासी आगमन सूचना जैसे कई कार्यों में योगदान देकर स्वयं को कोरोना योद्धा के रूप में स्थापित किया। हजारों शिक्षकों ने हजारों पेड़ लगाए और स्वच्छ भारत अभियान में भी भागीदारी की। सबसे बड़े लोकतंत्र के चुनाव उत्सव तो शिक्षकों की भागीदारी के बिना संभव ही नहीं हैं।
गीता (Geeta) का जीवन संघर्षों और कठिनाइयों का एक विशाल ग्रंथ है— बचपन में बाल विवाह का दंश झेला, दो किलोमीटर दूर से पानी लाते समय खेतों में काम करते हुए पढ़ाई की। पर कहते हैं— “जहाँ चाह, वहाँ राह।” शिक्षा के प्रति उनकी ललक प्रथम शिक्षिका सावित्रीबाई फुले का स्मरण कराती है। गीता (Geeta) का “राष्ट्रीय शिक्षक सम्मान” में चयन हम सभी के लिए गर्व का क्षण है। परंतु गीता जानती हैं कि यह सम्मान और पुरस्कार उनके लिए बहुत मायने नहीं रखते। आज भी उनकी आँखों के सामने उनका बहता विद्यालय और वे बच्चे हैं जो उनके अपने बच्चों से भी प्यारे थे और विद्यालय उनका दूसरा घर था।
वह पुरस्कार और सम्मान के लिए नहीं, बल्कि मानव मात्र की सेवा और देश के लिए अच्छे नागरिक तैयार करने के लिए काम करती हैं ताकि उनका त्याग और समर्पण देखकर और लोग भी देश के लिए कुछ कर सकें।
हमारी आदत है कि जब तक सरकार या कोई संगठन किसी व्यक्ति को सम्मानित नहीं कर देता, तब तक हम उसके कार्य की पहचान और उसके प्रति सम्मान व्यक्त नहीं करते। कभी-कभी ऐसी भी खबरें पढ़ने-सुनने को मिलती हैं कि—
“शिक्षक के तबादले पर पूरा गाँव भावविभोर हो गया।”
यह उनकी कर्तव्यनिष्ठा, कार्य के प्रति ईमानदारी और लोगों से स्वस्थ संवाद का पुरस्कार होता है। परंतु, ऐसी खबरें विरल ही होती हैं।
कबीर जी के इस दोहे के साथ आप सभी को शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ—
“सब धरती कागद करूँ, लेखनी सब वनराय।
सात समुंदर की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाय॥”
Meet The Teachers
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