Teacher is the pivot of education
शिक्षा (Education) की धुरी है शिक्षक
Teacher is the pivot of education

शिक्षा (Education)
शिक्षा (Education) शब्द का सामान्य अर्थ सीखना है। अतः सीखने की क्रिया का कर्ता शिक्षक कहलाता है। सीखने की प्रक्रिया में अनेक घटक जुड़ते हैं — विद्यालय, विद्यार्थी, पाठ्यक्रम, पुस्तकें तथा शिक्षक आदि। ये सभी मिलकर शिक्षा (Education) प्रक्रिया को पूर्णता प्रदान करते हैं। परंतु शिक्षा (Education) प्रक्रिया का कर्ता और आयोजक होने के नाते शिक्षक का शिक्षा (Education) में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। शिक्षक शिक्षा (Education) का प्रमुख संवाहक एवं धुरी है, जिसके बिना सीखने-सिखाने की कल्पना अधूरी है।
हमारे समाज में प्राचीन काल से लेकर आज तक शिक्षा (Education) के संवाहक में शिक्षक की केन्द्रीय भूमिका रही है। शिक्षा (Education) का मूल आधार सीखने-सिखाने की प्रक्रिया से जुड़ा हुआ है, और ‘सिखाना’ शब्द अंग्रेज़ी भाषा के ‘टीचिंग’ का हिंदी अनुवाद है। सिखाने (Teaching) का कार्य शिक्षक (Teacher) करता है — अर्थात ऐसा व्यक्ति जो शिक्षण का कार्य करता है। सीखने-सिखाने की इस महत्वपूर्ण प्रक्रिया को शिक्षक सहजता और विशेषज्ञता के साथ संपन्न करता है।
भारत में शिक्षक के लिए ‘गुरु’ शब्द का प्रयोग प्राचीन काल से होता आया है। गुरु का शाब्दिक अर्थ है — अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला, अर्थात जो हमें जीवन की संपूर्णता को प्राप्त करने में हमारी सहायता करता है।
21वीं सदी में शिक्षा (Education) अनेकानेक बदलावों के दौर से गुजर रही है, परंतु मानवीय संपर्क और दो-तरफा संवाद की भूमिका समय के साथ और भी अधिक प्रासंगिक होती जा रही है। भारतीय समाज में शिक्षक की भूमिका सदियों से महत्वपूर्ण रही है। बिना शिक्षक के, कुशलता से सीखना-सिखाना और ज्ञानार्जन संभव नहीं है।
हालाँकि, पश्चिमी देशों में व्यक्तिगत रूप से सीखने (Personalized Learning) जैसी अवधारणाएँ लोकप्रिय हो रही हैं और स्मार्ट लर्निंग पर भरोसा बढ़ रहा है, फिर भी कंप्यूटर, इंटरनेट और रोबोट जैसी तकनीकों में मानव मस्तिष्क और बुद्धि के जितना व्यापक सोचने-समझने का दायरा नहीं होता। वैज्ञानिकों ने इस पर चेतावनी भी दी है कि अत्यधिक स्मार्ट तकनीकें एक दिन इंसानों के लिए घातक भी हो सकती हैं। एक लेख में मानवीय भूलों को इंसान के स्वभाव के लिए आवश्यक बताते हुए, यह तर्क भी दिया गया कि मशीनों में मानवीय गुणों को विकसित करने की आवश्यकता है ताकि वे अधिक मानवीय बन सकें।
बच्चों का पहला ‘रोल मॉडल’ होता है शिक्षक
अधिकांश अभिभावकों का अनुभव बताता है कि परिवार के बाहर बच्चों का पहला ‘रोल मॉडल’ उनका शिक्षक होता है। अक्सर देखा जाता है कि बच्चे शिक्षक के कहे अनुसार काम करते हैं और उनके निर्देशन में नेतृत्व कौशल विकसित करते हैं। बच्चे शिक्षक से अनायास ही प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाते। ऐसे में यह आवश्यक है कि बच्चों को पढ़ाने वाले शिक्षक योग्य, निष्ठावान और विषय के प्रति पूरी विशेषज्ञता रखने वाले हों।
साथ ही, शिक्षक बच्चों को वह स्नेह और विश्वास भी देते हैं जो उन्हें भविष्य में जिम्मेदारी उठाने वाला, अपनी गलतियों को स्वीकार करने वाला, और उनसे सीखकर आगे बढ़ने वाला इंसान बनने में मदद करता है। ऐसा शिक्षक ही बच्चों को प्रगति के पथ पर निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है ताकि वे अपनी संभावनाओं के शिखर को छू सकें। यह हुनर सिखाना ही शिक्षक को विशिष्ट बनाता है, क्योंकि वही संभावनाओं को वास्तविकता में बदलने का हुनर जानता है।
अध्यापक अपने विद्यार्थियों को बच्चों जैसा स्नेह देता है और उन्हें चुनौतियों का सामना करने, संघर्ष करने तथा आत्मनिर्भर और स्वतंत्र बनने के लिए प्रेरित करता है।
साधारण कर्मचारियों की तरह शिक्षक केवल एक कर्मचारी नहीं होते। शिक्षक का दायित्व कार्यालय की सीमाओं से कहीं अधिक व्यापक है। वह एक कोच की तरह होता है, जो ओलंपिक खेल जैसी कठिन प्रतिस्पर्धा वाली जीवन-यात्रा के लिए अपने विद्यार्थियों को तैयार करता है। साथ ही, वह यह भी समझता है कि हर विद्यार्थी की मंज़िल एक जैसी नहीं होती। कुछ अच्छे दर्शक बनेंगे, कुछ लेखक, कुछ संगीतकार तो कुछ राष्ट्रनिर्माण में अपनी भूमिका निभाएंगे। कुछ बच्चे शिक्षक बनकर भी अपने विद्यार्थियों के सपनों को साकार करेंगे। इस प्रकार शिक्षक संभावनाओं के उस द्वार के रक्षक की भूमिका में सदैव समर्पित रहता है।
अतः शिक्षक का कार्य बहुआयामी होता है। किसी भी देश की भावी पीढ़ी का निर्माण करने वाला शिक्षक केवल पुरस्कार और पद का आकांक्षी नहीं होता। वह सच्चे अर्थों में एक दृष्टिदर्शी (Visionary) होता है, जो भविष्य की दिशा और बदलाव में अपनी भूमिका को सहजता से पहचानता है। चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ आएँ, वह अपने कर्तव्य से विमुख नहीं होता क्योंकि उसका कार्य अंधकार के विरुद्ध संघर्ष करने वाली पीढ़ी को भविष्य की अनिश्चित चुनौतियों के लिए तैयार करना है — ऐसी चुनौतियाँ जिनकी कल्पना समाज मात्र अनुमान के आधार पर करता है।
शिक्षक अपने विद्यार्थियों की क्षमताओं को धीरे-धीरे कुरेदकर बाहर लाता है, उन्हें आत्मविश्वास सिखाता है, और उनके सपनों को साकार करने के लिए प्रेरित करता रहता है।
सच ही कहा गया है —
“शिक्षक एक मोमबत्ती के समान है, जो स्वयं जलकर दूसरों के जीवन को आलोकित करता है।”

Harish Suvasia
\Lecturer
Pali, Rajasthan
Meet The Teachers
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