Shobha Kanwar (Meet The Teachers 2020): Bridging Rajasthan and California Through Education

Shobha Kanwar (Meet The Teachers 2020): Bridging Rajasthan and California Through Education
“समय बड़ा अनमोल है, मत कर यूं बर्बाद, कुछ तो ऐसा काम कर, लोग करें फिर याद”
आइए, आपको मिलवाते हैं एक ऐसी प्रेरणादायी अध्यापिका से, जिन्होंने अपने छोटे से कार्यकाल में वह कर दिखाया, जो लोग अपनी पूरी जिंदगी में भी नहीं कर पाते। शोभा कंवर (Shobha Kanwar), राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय (राउमावि) बरुंधन में कार्यरत हैं। इन्हें “कैलिफोर्निया वाली मैडम” के नाम से जाना जाता है।
लगभग 13 वर्ष पहले शोभा कंवर की नियुक्ति राजस्थान के एक छोटे से गांव, तंवरो का झोंपड़ा, के प्राथमिक विद्यालय में हुई, जहां केवल 10 घर थे। उस समय स्कूल में नामांकित बच्चों की संख्या मात्र 4 थी। जब वह पहली बार गांव पहुंचीं, तो रास्ता इतना दुर्गम था कि वह गिर पड़ीं। स्कूल में केवल चार बच्चे थे, और स्थिति बेहद चुनौतीपूर्ण थी। उनका पहला लक्ष्य था नामांकन बढ़ाना। नियुक्ति के समय अक्टूबर का महीना था, जब सभी दाखिले हो चुके थे। फिर भी, उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। गांव वालों से मिलीं, घर-घर जाकर अभिभावकों से बात की, और अगले ही दिन नामांकन 4 से बढ़कर 16 हो गया।
इस पहली जीत से उत्साहित होकर, शोभा ने अगला कदम उठाया—स्कूल के खंडहर जैसे भवन को सुधारना। वहां पशु बांधे जाते थे। उन्होंने गांव वालों से बात की, कुछ सहमत हुए, कुछ नहीं, लेकिन सभी के सहयोग से भवन को ठीक करवाया, साफ-सफाई करवाई, और स्कूल को पढ़ाई के लिए उपयुक्त बनाया। अपनी पहली तनख्वाह, जो तीन महीने की थी (लगभग 10,500 रुपये), से उन्होंने स्कूल में एक झूला लगवाया। बच्चों को पढ़ाने के साथ-साथ उन्हें प्यार देना, नहलाना, नाखून काटना, और सभी आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध कराना उनका नियम बन गया। धीरे-धीरे आसपास के गांवों के बच्चे भी स्कूल आने लगे।
स्कूल में एक सुंदर वाटिका बनाई गई। आसपास के गांवों में 100 पेड़ लगवाए गए। उन्होंने गांव की महिलाओं को स्वच्छता के लिए प्रेरित किया। अगले वर्ष नामांकन बढ़कर 28 तक पहुंच गया। उनका बस एक ही कहना था, “आप अपने बच्चे भेजो, बाकी सब हम देख लेंगे।” बच्चों के लिए स्टेशनरी, यूनिफॉर्म, बैग, जूते, मोजे, स्वेटर—सबका इंतजाम उन्होंने स्वयं किया।
फिर वह दिन आया, जो बूंदी के लिए गर्व का क्षण था। उनके स्कूल के बच्चे कैलिफोर्निया के एक स्कूल के बच्चों के पेन फ्रेंड बने। यह भारत का पहला सरकारी स्कूल था, जिसके बच्चे अमेरिका से जुड़े। वह भी ऐसे गांव में, जहां पहुंचना तक मुश्किल था। इस दौरान कई बार दुर्घटनाएं हुईं—कभी हाथ टूटा, कभी पैर, लेकिन उन्होंने स्कूल जाना कभी नहीं छोड़ा। यह थी उनकी दूसरी बड़ी कामयाबी।
शोभा कंवर (Shobha Kanwar) ने बालिका शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया। उन्होंने ऐसी लड़कियों को गोद लिया, जिनके माता-पिता में से कोई एक या दोनों नहीं थे, और उनकी पढ़ाई का पूरा खर्च उठाया। अब तक वह 60 ऐसी लड़कियों को गोद ले चुकी हैं। बाद में उनका स्कूल गांव के ही सीनियर सेकेंडरी स्कूल में मर्ज हो गया, जहां पहले केवल लड़के पढ़ते थे और 9वीं के बाद ही लड़कियां दाखिला लेती थीं। शोभा ने लड़कियों का नामांकन शुरू करवाया।
नवाचारों के लिए जानी जाने वाली शोभा कंवर ने कई अनूठे कार्य किए। वह 13 साल पहले रंगीन चॉक्स और लैपटॉप से पढ़ाने वाली पहली अध्यापिका थीं। उन्होंने स्कूल को आकर्षक बनाया, स्लाइडर, बाउंड्री वॉल, वाटर कूलर, फर्नीचर, और बच्चों के अनुरूप सजावट करवाई। बच्चों के साथ बैठकर खाना खाना, गर्मियों में 6 से 8वीं कक्षा के लिए अंग्रेजी शिक्षण कक्षाएं, और स्वयं टीएलएम (शिक्षण सामग्री) बनाना उनके नवाचारों का हिस्सा रहा।
Shobha Kanwar अध्यापिका मंच की बूंदी से पहली राज्य संदर्भ व्यक्ति बनीं। यूनिसेफ द्वारा बनाई गई अध्यापिका मंच की फिल्म, जो राज्य स्तर पर बालिका दिवस पर दिखाई गई, में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। राजस्थान के जिलों को याद करने का उनका अनोखा तरीका शिविरा पत्रिका में छपा। उनके कई टीएलएम बूंदी डाइट में प्रदर्शित हैं। वह नवाचार जागरूकता की आरपी, शोध कार्यक्रमों, और स्पेलिंग बी कांटेस्ट में भी सक्रिय रहीं। अध्यापिका मंच की पहली किताब सृजन का संपादन भी उन्होंने किया। नवोदय क्रांति की वह स्टेट मोटिवेटर हैं।
शोभा कंवर (Shobha Kanwar) को 5 बार जिला प्रशासन से सम्मानित किया गया। उन्हें भामाशाह अवार्ड, न्यू इंडियन की खोज नेशनल अवार्ड, जयपुर रत्न, और महिला एवं बाल विकास की पुस्तक “एक पाती बेटी के नाम” में देश के नामचीन लेखकों के साथ Shobha Kanwar की कहानी शामिल है। 2019 में उन्हें वीमेन ऑफ द फ्यूचर अवार्ड, ब्रिक्स नेशनल अवार्ड फॉर बेस्ट टीचर, और 2020 में गरिमा एवं बालिका संरक्षण अवार्ड से सम्मानित किया गया। इस अवार्ड की 25,000 रुपये की राशि उन्होंने बेटियों के लिए दान कर दी।
लॉकडाउन के दौरान Shobha Kanwar अपने जिले की पहली अध्यापिका बनीं, जिन्होंने घर से रोज ऑनलाइन कक्षाएं लीं। अमेरिका के सहयोग से स्कूल में 5.5 लाख रुपये की लागत से एक टीन शेड और मंच बनवाया, जिसमें उन्होंने स्वयं 50,000 रुपये का योगदान दिया। वह कोटा के कोचिंग स्टूडेंट्स के लिए मोटिवेशनल स्पीकर, आंगनबाड़ी मेंटर, और कोविड-19 वैक्सीन ट्रायल में अपने शरीर को देने की अनुमति देने वाली जिले की पहली अध्यापिका बनीं। विभिन्न संस्थाओं के साथ मिलकर वह सामाजिक कार्यों में भी सक्रिय हैं।
शोभा कंवर (Shobha Kanwar) : राजस्थान और कैलिफोर्निया को शिक्षा के माध्यम से जोड़ने वाली एक प्रेरणादायी शिक्षिका।

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