Om Prakash Prajapat (Meet The Teachers-2020): मेरा भगवान मेरे बच्चों में बसता है

Om Prakash Prajapat राजस्थान के बाड़मेर जिले के शिव ब्लॉक में रा.प्रा.वि. कुम्हारों की ढाणी, गिरल (आकली) में शिक्षक के पद पर कार्यरत हैं। उन्होंने अपनी BSTC ट्रेनिंग के दौरान अलवर की एक सरकारी स्कूल का वीडियो देखा, जो रेलवे स्टेशन जैसी थी। तब उन्होंने ठान लिया कि जिस दिन वे शिक्षक बनेंगे, अपनी स्कूल को भी वैसी ही बनाएंगे।
संयोगवश, उनकी पहली नियुक्ति एकल शिक्षक के रूप में हुई। एक दिन अनायास ही अलवर की स्कूल की खबर फिर से उनके फोन पर आई, जिसने उन्हें चित्रकारी करवाने की याद दिलाई। उन्होंने इंटरनेट पर ऐसी चित्रकारी करने वालों के संपर्क खोजे, लेकिन कुछ ने कहा कि दो कमरों की स्कूल में रेल नहीं बनेगी। कुछ ने कहा कि सिर्फ दो कमरों में पेंटिंग करवाने का खर्च ज्यादा होगा। यद्यपि बच्चों की संख्या के हिसाब से कमरे पर्याप्त थे, लेकिन एक कमरा स्टोर से भरा रहता था और दूसरे में सभी बच्चों का बैठना संभव नहीं था। गर्मी में लू और सर्दी में शीतलहर के कारण और भी समस्याएँ आती थीं।
इसके लिए उन्होंने योजना बनाई कि बच्चों की संख्या बढ़ाने पर कमरे बढ़ जाएंगे। ग्रीष्मकालीन अवकाश में, जब बच्चे मिड-डे मील के लिए आते थे, तब उन्होंने खाना तैयार होने तक अतिरिक्त कक्षाएँ शुरू कीं, जिससे बच्चों के स्तर में काफी सुधार हुआ। इस अवकाश में उन्होंने बच्चों को टारगेट दिया कि यदि वे अपने आसपास 5 साल से बड़े बच्चों की जानकारी देंगे, तो उन्हें उपहार मिलेगा। बच्चों के सहयोग से स्कूल का नामांकन एक साल में 70% बढ़ गया, जिसके कारण भर्ती की प्रतीक्षा सूची से एक और शिक्षक आ गया।
कुछ बच्चे जो 6 किमी दूर अन्य स्कूलों में पढ़ते थे, कभी-कभी दूरी के कारण स्कूल नहीं जा पाते थे। Om Prakash उन्हें अपनी स्कूल में बुलाकर उनकी पढ़ाई का ध्यान रखते हैं। बालसभा को आकर्षक बनाने के लिए अंतिम कालांश को डांस क्लास में बदल दिया, जिससे बालसभाएँ और रोचक हो गईं। इसके अलावा, विभिन्न खेलों के माध्यम से भी बालसभा को आकर्षक बनाया।
शिव ब्लॉक के आगोरिया के श्रवण जांगिड़ से प्रेरित होकर, जिन्होंने राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय, आगोरिया, बाड़मेर को स्मार्ट स्कूल में बदला और रेलगाड़ी वाली पेंटिंग बनवाई, Om Prakash ने भी ऐसी पेंटिंग का प्लान बनाया, लेकिन बाद में इसे रद्द कर दिया, क्योंकि वे कुछ अलग करना चाहते थे। निष्ठा ट्रेनिंग के दौरान उन्हें प्रोजेक्टर से पढ़ाने का विचार आया, क्योंकि पर्यावरण के अधिकांश टॉपिक—जैसे दुर्ग, अंतरिक्ष, रेल, हवाईअड्डे, और पहाड़—उनके छात्रों के लिए अपरिचित थे, जो कभी गाँव से बाहर नहीं गए थे। प्रोजेक्टर से पढ़ाने से उनकी स्कूल शिव ब्लॉक की पहली प्रोजेक्टर-आधारित प्राथमिक स्मार्ट स्कूल बनी। उनके प्रयासों को देखकर अंत्योदय संस्था ने स्कूल में खिलौना बैंक भी स्थापित किया।
लॉकडाउन के दौरान, जब अधिकांश अभिभावक—जो दिहाड़ी मजदूर थे—की आय बंद हो गई, स्कूल ने मजदूर दिवस पर योजना बनाई कि सभी 80 बच्चों की पढ़ाई का खर्च (बैग, टाई, बेल्ट, कॉपियाँ, स्लेट, पेंसिल आदि) Om Prakash और उनके स्वयंसेवी सहयोगी उठाएंगे। इससे अभिभावकों का आर्थिक बोझ कम होगा और शिक्षकों को भी खुशी मिलेगी।
नर्सिंग क्षेत्र में अनुभव होने के कारण Om Prakash संतुलित पोषण का महत्व समझते हैं और समय-समय पर बच्चों के लिए विशेष व्यंजन तैयार करते हैं। दोनों शिक्षकों ने अपने जन्मदिन और सालगिरह के खर्च को भी स्कूल के लिए उपयोग करने की योजना बनाई।
अधिकांश अभिभावक मीटिंग में बिना पढ़े अंगूठे या हस्ताक्षर कर देते हैं। स्कूल के वित्तीय कार्यों में पारदर्शिता बनाए रखने और अभिभावकों को पढ़ाई से जोड़ने के लिए, लॉकडाउन के बाद, जब स्कूल खुलेगी और हालात सामान्य होंगे, तब बच्चों के साथ-साथ अभिभावकों को भी पढ़ना-लिखना सिखाने की योजना पर काम चल रहा है।
उनकी अगली योजना धोरों के बीच बसी इस स्कूल में 5 बीघा जमीन पर एक सुंदर बगीचा लगाने की है, ताकि गर्मी में धूल भरी आंधियों से कमरों में आने वाली धूल को रोका जा सके। शिक्षक और ग्रामीण मिलकर इस काम में जुटे हैं।
“मेरा भगवान मेरे बच्चों में बसता है” के आदर्श को अपनाकर Om Prakash Prajapat अपने शैक्षिक दायित्व को निष्ठा से निभा रहे हैं।
Meet The Teachers
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