The Farmer’s Plight and the Helping Hand of Sonu Sood
The Farmer’s Plight and the Helping Hand of Sonu Sood

The Farmer’s Plight and the Helping Hand of Sonu Sood
मुंशी प्रेमचंद की “पूस की रात” नामक कहानी तो आपने पढ़ी ही होगी, और यदि नहीं पढ़ी है तो जरूर पढ़ें। इस कहानी के माध्यम से किसान की विवशता और अभावों का जो मार्मिक वर्णन किया गया है, वह प्रेमचंद के काल के बाद भी आज तक वैसा ही हमारे सामने चुनौती बनकर खड़ा है।
वैसे तो सिनेमा जगत की नजर खेत और किसान पर कम ही पड़ती है, फिर भी उनकी पीड़ा और दर्द को कुछ फिल्मों ने माध्यम बनाकर जरूर सामने लाने का सार्थक प्रयास किया है, जैसे—दो बीघा जमीन, मदर इंडिया, लगान, पीपली लाइव, उपकार आदि।
लेकिन पैसे के लिए किसी मार्मिक सामाजिक सरोकार के विषय पर किसानों के जीवन, अभावों और पीड़ाओं का चित्रण करना अलग बात है और उसे वास्तविक रूप से जीना अलग बात है। दया दिखाना एक विषय है, जबकि दया के बाद मदद का हाथ बढ़ाना एक अलग भावना है। भूखे व्यक्ति को रोटी का चाहे कितना भी सुंदर चित्र दिखा दो, उससे पेट थोड़ी ही भरता है। कवि चाँद की खूबसूरती की उपमा किसी के साथ करे, पर गरीब तो रोटी से ही संतुष्ट होगा। कितने ऐसे अभिनेता हैं जिन्होंने किसानों की मदद के लिए हाथ बढ़ाया है?
भले ही अभिनेता सोनू सूद ने किसान-मजदूर के जीवन पर आधारित किसी फिल्म में अभिनय न किया हो, लेकिन एक किसान का वीडियो देखकर पूरे देश के हीरो और आदर्श के रूप में स्थापित हो गए, जिसमें एक किसान अपनी बेटियों से खेत की जुताई करवाने के लिए विवश था। उनका दिल पसीजा, स्वाभिमान जागा, वास्तविक राष्ट्रवाद की भावना पैदा हुई, कर्तव्य का बोध हुआ और खेती के लिए ट्रैक्टर भिजवा दिया ताकि बेटियों को हल न खींचना पड़े। इससे पहले भी उन्होंने लॉकडाउन में प्रवासी मजदूरों के पैरों के छालों का दर्द महसूस किया और उन्हें घर पहुँचाने के लिए वाहन उपलब्ध करवाए थे।
“बेटी बचाओ” के नारों को भूल जाइए। नारों से न तो बेटियां बचती हैं और न ही उनकी सुरक्षा की कोई गारंटी होती है। इसके लिए बड़े स्तर पर व्यवस्थाओं का निर्माण, जाति, धर्म, समुदाय और राजनीतिक स्वार्थ से ऊपर उठकर सोच विकसित करना आवश्यक है।
कितनी ही राज्य और केंद्र सरकारें बदलती रहती हैं, लेकिन किसान की दशा और पीड़ा बदलने का पहिया रफ्तार ही नहीं पकड़ पाता। हर बार चुनावों से ठीक पहले नेताओं द्वारा किसानों की समृद्धि और सुध लेने के बड़े-बड़े वादे और घोषणाएं की जाती हैं। उनके भाषणों के बादल तो गरजते और बरसते हैं, पर चुनावों के बाद उनके हक के बादलों का मानसून लौटने लगता है और आशाओं को फिर सूखा मार जाता है।
मीडिया वालों का कैमरा भी मुरझाती फसल, उजड़ती हरियाली, टिड्डी प्रकोप और सूखे की तरफ कम ही घूमता है। प्राइम टाइम पर इस विषय पर चर्चा को आप सपना ही समझिए। वहां तो नेताओं के पहनावे, उनकी छींक, अभिनेताओं के लाडलों ने क्या खाया, कब सोए, किस अभिनेत्री ने झाड़ू के साथ सेल्फी ली—यही राष्ट्रीय मुद्दों के बड़े विषयों के लिए सुरक्षित और संरक्षित किया गया है।
किसान अपनी आजीविका और देश की समृद्धि के लिए कर्ज के बोझ तले दबता ही जाता है। आज भी वह कई जगह सूदखोरी के जाल में फंसा हुआ है, और कई बार इसे न चुका पाने का परिणाम उसकी आत्महत्या या अपनी जमीन और यहाँ तक कि अपनी संतान को बेचने तक सामने आता है। स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को आज तक लागू नहीं किया जा सका। अब क्यों नहीं किया जा सका? यह सवाल पूछने का हक किसे है और क्यों है? यदि आप इस विषय पर सवाल उठाएंगे तो किसान-हितैषी हों या न हों, पर सरकार-विरोधी जरूर बन जाएंगे।
किसान और “सूद” का साथ चोली-दामन का रहा है, लेकिन पहली बार ऐसा लग रहा है कि अब उसका स्थान “सोनू सूद” भी लेगा। आज एक ने सुध ली है, कल और भी सोनू आएंगे, एक से अनेक का साथ मिलेगा, कारवां बढ़ेगा, किसान और उसकी बेटियाँ मुस्कराएँगी, देश मुस्कराएगा। दुश्मन “सूद” की जगह मित्र “सूद” आएँगे।
शायद फिर न लिखना पड़े वह शेर—
किस्मत में लिखा कर लाए हैं दर-दर भटकना,
मौसम कैसा भी हो, परिंदे परेशान ही रहते हैं।
बहुत-बहुत आभार “सोनू सूद” का और सलाम उसकी नेक सोच को।
लेखक

एस.एम. बरोड़ (अध्यापक)
रा. मा. वि., खुडेरा बड़ा, रतनगढ़ (चूरू) राजस्थान
The Farmer’s Plight and the Helping Hand of Sonu Sood
The plight of the farmer in India has always been heart-wrenching. Despite being the backbone of the nation, the farmer faces challenges like drought, debt, and a lack of support. Over the years, governments and politicians have promised relief to the farmer, but little has changed. The burden on the farmer continues to grow. However, a ray of hope shines through the helping hand of Sonu Sood.
Sonu Sood’s helping hand has extended beyond the glamorous world of Bollywood to the fields of the struggling farmer. He recognized the pain of a farmer who had no choice but to make his daughters pull the plough in the absence of an ox. Sonu Sood’s helping hand not only provided a tractor but also respect and dignity to the farmer.
Through his generosity, Sonu Sood’s helping hand has become a symbol of real change and empathy towards the farmer. The farmer now sees Sonu Sood not only as a hero on-screen but also as a savior in real life. The farmer’s plight may persist, but Sonu Sood’s helping hand has shown that one individual can make a world of difference.
Meet The Teachers
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