Death Feast (मृत्युभोज )

Death feast is a social evil

Death feast is a social evil

Death feast is a social evil

Death Feast (मृत्युभोज )
Death Feast (मृत्युभोज )

मृत्युभोज (Death Feast) सामाजिक बुराई

सदियों से चली आ रही सामाजिक कुरीति मृत्यूभोज (Death Feast) आज के सामाजिक दौर में भी जिन्दा है। इंसान स्वर्ग व खाने के लालच में कितना गिरता है उसका जागता नमूना है, सामाजिक कुरीतियां। ऐसी ही एक पीड़ा देने वाली कुरीति वर्षों पहले कुछ स्वार्थी लोगों ने भोले – भाले लोगों में फैलाई गयी थी वो है ‘मृत्यूभोज’ (Death Feast)।

मानव विकास के रास्ते में यह गंदगी कैसे पनप गयी, समझ से परे हैं। जानवर भी अपने किसी साथी के मरने पर मिलकर दु:ख प्रकट करते हैं, इंसानी बेईमानी दिमाग की करतूत देखों कि यहां किसी व्यक्ति के मरने पर सगे सम्बन्धी भोज कर रहे हैं। पकवान खाते हैं। किसी घर में खुशी का मौका हो तो समझ आता है कि मिठाई बनाकर, खिलाकर खुशी का इजहार करें, खुशी जाहिर करें।

लेकिन किसी व्यक्ति के मरने पर मिठाईयां परोसी जायें, खाई जायें, इस इस शर्मनाक परम्परा को मानवता की किस श्रेणी में रखें। इंसान की गिरावट को मापने का पैमाना कहाँ खोजे? इस भोज के भी अलग – अलग तरीके हैं। कहीं पर यह एक दिन ही में किया जाता है। कहीं तीसरे दिन से शुरू होकर बारहवें – तेरहवें दिन तक चलता है। कई लोग श्मशान घाट से ही सीधे मृत्युभोज (Death Feast) के लिए सामान लाने निकल पड़ते हैं।

अगर ऐसा चलता रहा तो श्मशान घाट पर पर ही टैण्ट लगाकर जीमने लग जायेंगे ताकि अन्य जानवर आपको गिद्ध से अलग समझने की भूल न कर बैठे। रिश्तेदारों को छोड़ो, पूरा गांव का गांव व आसपास का पूरा क्षेत्र टूट पड़ता है खाने को। तब यह सियत दिखाने का अवसर बन जाता है। आसपास के कई गांवों से ट्रैक्टर – ट्रोलियों में गिद्धों की भांति जनता इस घृणित भोज पर टूट पड़ती है।

जब मैंने समाज के बड़े बुजुर्गों से बात की व इस कुरीति के चलन के बारे में बात की व उनसे पूछा तो, उन्होंने बताया कि उनके जमाने में ऐसा नहीं था। रिश्तेदार ही घर पर मिलने आते थे। उन्हें पड़ोसी भोजन के लिए ले जाया करते थे। सादा भोजन करवा देते थे। मृत व्यक्ति के घर बारह दिन तक कोई भोजन नहीं बनता था, तेरहवें दिन कुछ सादे क्रिया कर्म होते थे। परिजन बिछुड़ने के गम को भूलने के लिए मानसिक व आर्थिक सहारा दिया जाता था।

लेकिन आज हम कहाँ पहुंच गए। परिजन के बिछुड़ने के बाद उनके परिवार वालों को जिन्दगी भर के लिए जख्म दे देते थे। जीते जी चाहे ईलाज के लिए 100-200 रूपये उधार न दिए हो लेकिन मृत्युभोज (Death Feast) के लिए 6-7 लाख का कर्जा उधार दे देंते है। ऐसा नहीं करो तो समाज में इज्जत नहीं बचेगी। क्या गजब पैमाना बनाया है समाज ने। हमनें इज्जत के इंसानियत को शर्मसार करके परिवार को बर्बाद कर इज्जत पाने का पैमाना बनाया है। कहीं कहीं पर तो इस अवसर पर अफीम की मनुहार भी करनी पड़ती है, इसका खर्च मृत्युभोज (Death Feast) के बराबर ही पड़ता है।

जिनके कधों पर इस कुरीति को रोकने का जिम्मा है वो नेता – अफसर खुद अफीम का जश्न मनाते नजर आते हैं। कपड़ों का लेन देन भी ऐसे अवसरों पर जमकर होता है जिसे राजस्थान में ओढ़ावणी के नाम से जाना जाता है। कपड़े केवल दिखाने के पहनने लायक नहीं। बर्बादी का ऐसा नंगा नाच, जिस समाज में चल रहा हो, वहां पूंजी कहां से बचेगी? बच्चे कैसे पढेंगे? बीमारों का ईलाज कैसे होगा?

घिन्न होती है जब यह देखते हैं कि जवान मौतों पर भी समाज के समझदार लोग जानवर बनकर मिठाईयां उड़ा रहे होते हैं। गिद्ध भी गिद्ध को नहीं खाता। पजें वाले जानवर पजें वाले जानवर को खाने से बचाते हैं। लेकिन इंसानी चोला पहनकर घूम रहे दोपाया जानवरों को भी शर्म नहीं आती है जब जवान माँ-बाप के मरने पर उनके बच्चे अनाथ होकर, सिर मुंडाये आसपास घूम रहे होते हैं और समाज के प्रतिष्ठित लोग उस परिवार की मदद करने के स्थान पर भोज का आनंद ले रहे होते हैं।

जब भी बात करते हैं इस घिनौने कृत्य को बंद करों तो समाज के ऐसे-ऐसे कुतर्क ज्ञानी खड़े हो जाते हैं अपना तर्क ज्ञान बांटने लग जाते हैं कि तुम्हारे माँ-बाप ने जीवन भर तुम्हारे लिए कमाकर गये हैं तो उनके लिए तुम कुछ नहीं करोंगे? इमोशनल अत्याचार शुरू कर देंते हैं, चाहे अपना बाप घर के कोने में भूखा पड़ा हो लेकिन यहां ज्ञान बांटने जरूर आ जाते हैं।

इंसानियत पहले से ही इस कृत्य पर शर्मिंदा हैं, अब ओर मत करो। किसी व्यक्ति के मरने पर उसके घर पर जाकर भोजन करना ही इंसानी बेईमानी की पराकाष्ठा है और अब इतनी पढ़ाई – लिखाई के बाद तो यह चीज प्रत्येक समझदार व्यक्ति को मान लेनी चाहिए।

हॉल ही राजस्थान सरकार ने इस सामाजिक कुरीति को जड़ से मिटाने के लिए कानूनी अमलीजामा पहनाया है कि किसी भी समाज में अगर ऐसा कृत्य किया जाता है तो उस गांव के पंच, संरपच, ग्राम सेवक व पटवारी को निलंबित कर दिया जायेगा यदि इसकी सूचना प्रशासन को नहीं दी तो। गांव और कस्बों में गिद्धों की तरह मृत व्यक्तियों के घरों में मिठाईंया पर टूट पड़ते लोगों की तस्वीर अब दिखाई नहीं देनी चाहिए……

लेखिका

Mrs. Anita Kumari
अध्यापिका
रा.उ.प्रा.वि.कितासर बीदावतान
Bikaner Rajasthan

Meet The Teachers

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